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जीवनी/आत्मकथा >> सुकरात

सुकरात

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10548
आईएसबीएन :9781613016350

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पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा- शब्द संख्या 12 हजार...

आज से कोई 2,400 वर्ष पूर्व यूनान के एथेंस नगर में कबीर जैसे फक्कड़ एक महात्मा हुए हैं जिनका नाम था सुकरात। यह एक ऐसा नाम है जो मर कर भी अमर है। इस महान दार्शनिक को, जिसको आम जनता बहुत प्यार करती थी, उसके देश के शासक नहीं समझ पाए, अतः उन पर मुकदमा चलाया गया और मृत्यु दंड दे दिया गया। जेल में उन्होंने शांत भाव से विषपान किया और आत्मा की अमरता का संदेश देते हुए महाप्रयाण कर गए।

पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा-

  1. अनुक्रम
      1. जन्म-कथा
      2. पिता की अंत्येष्टि
      3. जीवन की दिशा
      4. सोफिस्ट दार्शनिक
      5. शिक्षा व्यवस्था
      6. सुकरात की कार्यविधि
      7. सदाचार के मायने
      8. प्रजातंत्र के विरोधी ?
      9. रहस्यवादी थे ?
      10. स्वयं को जानो
      11. मुकदमें के दौरान
      12. मृत्यु की प्रतीक्षा
      13. मुझे अध्यापक न कहो
      14. जब सुकरात बाल-बाल बचे
      15. पैगम्बर सुकरात
      16. कवि सुकरात
      17. एथेंस में थिएटर (थेआतरो)
      18. पलायन
      19. जैसा उन्होंने कहा...

 

सुकरात...

यूनान की रानी कहे जाने वाले अत्यंत सुंदर और समृद्ध नगर एथेंस की गलियों के नुक्कड़ पर, किसी मंदिर के मंडप तले, किसी दूकान पर, किसी मित्र के घर या सार्वजनिक स्नानगृह के बाहर अक्सर जो व्यक्ति दिखाई पड़ जाता है, बच्चा-बच्चा उसे जानता है, पहचानता है। बेडौल गंजा सिर, उसकी तुलना में छोटा चेहरा, गोल ऊपर उठी हुई नाक, हृदय तक पहुंचने की सामर्थ्य रखने वाली बाहर की ओर निकली दो सजग आँखें और लम्बी दाढ़ी वाला व्यक्ति उपहासास्पद लगता है। उसकी कुरूपता की लोग हंसी उड़ाते हैं पर वह कतई बुरा नहीं मानता क्योंकि वह जानता है कि वे उसकी हंसी न उड़ाकर उस कुम्हार की हंसी उड़ा रहें हैं जिसने उसे गढ़ा है। दिव्य तेज और ओज से विराजमान सुकरात अपनी गंभीर गतिशीलता में अग्रसर होते रहते हैं। गर्मी हो या सर्दी उनकी देह पर काला-सा कोट या लबादा पड़ा रहता है। पैरों की पदत्राणों से मैत्री नहीं है।

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